शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

मेरे हाथों में तेरे गिरहबान होंगे
जब कभी अश्क बाज़ुबान होंगे

मोह्ताज हम नहीं तेरे ऐ सूरज
रौशनी के और भी इंतजाम होंगे

आईने कितने बदलोगे "प्रकाश"
चेहरे से कम कहाँ निशान होंगे

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